Ankit Chauhan, Amar Ujala, Baghpat
Publié par: Pankaj Srivastava
Mis à jour lun. 31 janv. 2022 04:15 IST
Résumé
Les cordes sont tendues. Il y a des attaques. Les mots perdent leur dignité dans les attentats. Perdre sa dignité. Ça a fait ça…. Il n’a rien fait… La question est – qu’avez-vous fait? Si vous gagnez, quelles lunes et étoiles apporterez-vous au sol ? Dis-moi ça
Photo d’archive de l’ancien Premier ministre Chaudhary Charan Singh
– Photo : Amar Ujala
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Portée
छपरौली का अपना सियासी मिजाज है। अंदाज है। 1937 में ही चौधरी चरण सिंह ने छपरौली पर जो वर्चस्व कायम किया, वह अब तक कायम है। तब से अब तक चौधरी चरण सिंह का परिवार का, या उनके उतारे प्रत्याशी ही इस सीट पर जीतते आए हैं। यानी छपरौली रालोद का अभेद्य दुर्ग है। 2017 में प्रचंड लहर में भी रालोद के छपरौली से जीते एकमात्र विधायक को अपने पाले में करने के बावजूद भाजपा के सामने यहां के मतदाताओं का दिल जीतने की चुनौती बरकरार है। अब बातें उन समीकरणों की जिसकी वजह से यह एक अभेद्य दुर्ग रही है। इस सीट पर 1.30 लाख जाट मतदाता हैं। जो कैसी भी हवा हो, उसका रुख मोड़ने का माद्दा रखते हैं। रालोद ने इसी सीट से 2002 में विधायक रहे प्रो. अजय कुमार को मैदान में उतारा है, तो भाजपा ने चौधरी परिवार के इस अभेद्य किले को फतह करने की उम्मीद में विधायक सहेंद्र सिंह रमाला को प्रत्याशी बनाया है। सहेंद्र रालोद के चुनाव चिह्न पर 2017 में विधायक बने और बाद में पाला बदल भाजपा में चले गए। पार्टी के काडर वोट बैंक के साथ मुस्लिम मतदाताओं की जुगलबंदी की उम्मीद में बसपा ने यहां साहिक को उतारा है। वहीं, कांग्रेस ने डॉ. यूनुस चौधरी पर दांव लगाया है। जाट वोटों में सेंध की उम्मीद में आप ने यहां से राजेंद्र खोखर को मैदान में उतार दिया है। क्षेत्र का सियासी मिजाज जानने के लिए हम भड़ल पहुंचे। यहां चौपाल में ग्रामीणों से हुक्के पर चर्चा करते मिले चौधरी नरेंद्र सिंह राणा कहते हैं, किसान आंदोलन के बाद ही जाट मतदाता एकजुट होने का मन बना चुका था। हालांकि, सपा के साथ टिकट बंटवारे में हुई खींचतान से थोड़ा नाराज है, जिससेे जाट मतदाता बंटेंगे। पर, बड़ा हिस्सा रालोद को ही जाएगा। गांगनौली में मिले संजीव राठी कहते हैं, बेहतर कानून-व्यवस्था और मोदी-योगी सरकार के कामों की वजह से भाजपा प्रत्याशी सहेंद्र सिंह के साथ लोग जुड़ रहे हैं। राशन एवं अन्य जनहित से जुड़ी योजनाओं का भी लाभ मिलेगा। छपरौली में दुकान पर मिले ईश्वर सिंह को लगता है कि सपा के साथ गठबंधन की वजह से इस बार जाट-मुस्लिम गठजोड़ मजबूत हुआ है, जिसका फायदा अजय कुमार को मिलेगा। छपरौली के ही अशरफ कहते हैं, मुसलमानों को जहां अपना हित दिखाई देगा, वहां वोट करेंगे। जो मुखर हैं, वह अपने हिसाब से समीकरण बताते हैं, वहीं कुछ मतदाता ऐसे भी हैं जोे चुप्पी साधे हुए हैं। आखिरी वक्त में चुप्पी साधे मतदाताओं का रुख अहम भूमिका निभाएगा। - चौधरी साहब के बाद बेटी सरोज व अजित सिंह भी यहां से लड़े चौधरी चरण सिंह छपरौली में 1937 से 1977 तक हर चुनाव जीतते रहे। इसके बाद वह केंद्र की राजनीति में पहुंच गए। इस सीट से उनकी बेटी सरोज वर्मा भी 1985 में और बेटे चौधरी अजित सिंह वर्ष 1991 में विधायक चुने गए। एडवोकेट नरेंद्र सिंह भी यहां से पांच बार विधानसभा पहुंचे। - किसान आंदोलन का है प्रभाव छपरौली में किसान आंदोलन का बड़ा असर है। यहां गन्ना बकाया भुगतान के मुद्दे के साथ ही चौधरी चरण सिंह नहर परियोजना के अधूरे पड़े होने से किसान नाराज हैं। हरियाणा से जोड़ने के लिए यमुना पर पुल यहां की बरसों पुरानी मांग है। वर्ष 2017 में पुल का शिलान्यास तो हुआ, पर यह अभी पूरा नहीं हो पाया है। - बड़ौत-बागपत में भी रालोद की परीक्षा छपरौली से सटी बड़ौत सीट का गठन 2012 में हुआ। 2012 में यहां बसपा ने जीत दर्ज की, तो 2017 में भाजपा ने। इस बार भी बड़ौत सीट पर कड़ा मुकाबला है। भाजपा ने यहां विधायक केपी मलिक को ही प्रत्याशी बनाया है, तो रालोद ने नए चेहरे जयवीर सिंह तोमर पर दांव लगाया है। बागपत सीट कभी रालोद के खाते में आई, तो कभी उसके हाथ से फिसल गई। बागपत में भाजपा ने विधायक योगेश धामा को ही दोबारा टिकट दिया है, तो रालोद ने पूर्व मंत्री कोकब हमीद के बेटे अहमद हमीद को उतारा है। दोनों ही सीटों पर रालोद की परीक्षा है। 2017 का परिणाम सहेंद्र सिंह रमाला, रालोद (अब भाजपा में) 65,124 सत्येंद्र सिंह, भाजपा 61,282 मनोज चौधरी, सपा 39,841 राजबाला, बसपा 30,241
Reference :
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